गणेश चतुर्थी कैसे मनाएँ: आसान टिप्स और परम्पराएँ
गणेश चतुर्थी हर साल कई हिन्दुओं के लिए सबसे ज़्यादा इंतज़ार वाला त्या है। इस दिन शनि, मोदक, ध्वज और प्रसेसन्स लड़कन गोल्फ़ दुमक वनपरिकुज प्रश्रव आते हैं। अगर आप भी नहीं जानते कि अलग-अलग राज्य में किस तरह मनाया जाता है, तो चलिए देखते हैं ।
सबसे पहले, भगवान गणेश की मूर्ति या प्लास्टिक की पिंडारु को घर में रखकर पूजा की गई। जिन लोगो को प्राकृतिक कपड़े, पानी और पाप से बचे रहने का महत्त्व पता है, वे इस बार मिट्टी की मूर्तियों को चुनते हैं। ये मूर्तियां न केवल सुंदर लगती हैं, बल्के जमीन में जल रही कूड़ा‑कचरा से ज़्यादा पर्यावरण‑दोस्त होती हैं।
गणेश चतुर्थी की मुख्य परम्पराएँ
1. विनायक चतुर्दशी के दिन तेज़ी से उठ कर शुद्ध जल से स्नान करना परम्परा है। फिर मोदक, लड्डू, पापड़ी जैसी मिठाइयाँ तैयार की जाती हैं। कई घरों में मोदक के कई प्रकार बनाते हैं: तले हुए, भाप में पकाए हुए, नारियल या सफ़ेद शक्कर से भरे हुए।
2. ज्येष्ठ शोक निवारण के लिए सजावट बहुत ज़रूरी है। बैंगनी-सफ़ेद रंग के फूल, शरभतिया कपड़े, और कागज़ की दीपक से घर की थाली सजाएँ। यदि आपका घर छोटा है, तो बेडरूम के कोने में छोटे पल्लू लगाना भी बहुत बढ़िया रहता है।
3. पॉंडली परेड गुजरात में बहुत लोकप्रिय है। गाँव‑गाँव में तीव्र पंडाल तैयार किए जाते हैं और इनके साथ लड़कियां और लड़के नाचते-गाते हैं। इस परेड में पर्यावरण‑सुरक्षित उपायों को अपनाने हेतु कई शहरों ने प्लास्टिक की बैग को हटा कर कपड़े की थैलियों का उपयोग शुरू किया है।
पर्यावरण‑सुरक्षित गणेश पूजा कैसे करें
प्लास्टिक और ढेले के इन दुरुपयोगों से बचने के कई आसान कदम हैं। सबसे पहले, मिट्टी या पत्थर की मूर्ति चुनें। दो-तीन दिन बाद, इसे नदी या समुद्र में न डालें। उसके बजाय इकट्ठा करके पुनः प्रयोज्य कागज़ के थैले में रखें और फिर इसे निचोड़ें।
दूसरा, सजावट में प्राकृतिक फूल और पत्तियों का उपयोग करें। अगर आपको रंग चाहिए, तो घर में मौजूद हल्दी, चुना या नींबू का रस मिलाकर रंग बना सकते हैं। इससे ना सिर्फ आपका बजट बचता है, बल्कि हवा में विषैले धुएं का भी कम किया जाता है।
तीसरा, मिठाइयों की सामग्री में हल्का कार्बन फुटप्रिंट रखने का प्रयास करें। स्थानीय दूध, ताज़ा नारियल और घर में उगाए हुए जौ या चने के आटे से मोदक बनाना न सिर्फ स्वादिष्ट होता है, बल्कि फ़सल को सीधे समर्थन भी देता है।
अंत में, पूजा समाप्त होने के बाद उत्सव को साफ‑सुथरा रखें। धूप में सूखी पत्तियों को जला दें या रक्तिस जमीन में दफ़न कर दें। इस तरह न केवल भगवान की पूजा शुद्ध रहती है, बल्कि पर्यावरण भी सुरक्षित रहता है।
गणेश चतुर्थी का मूल उद्देश्य नए आरम्भ, बाधाओं को हटाना और ज्ञान का प्रसार है। इसे मनाते समय अगर हम पर्यावरण के साथ भी तालमेल बिठाएँ, तो यह त्यौहार सच्चे अर्थ में ‘हरित’ बन जाता है। आपका उत्सव खुशियों से भरपूर हो, और आपके घर में सुख‑समृद्धि हमेशा बरकरार रहे।